वैष्णव गौरव क्यों ?
अपनी बात
जो औरों के हित जीता है, जो औरों के हित मरता है ।
उसका हर आंसू रामायण, प्रत्येक कर्म ही गीता है ।
11 फरवरी 2007 को मैं वैष्णव समाज के भारत प्रसिद्ध स्वामी रामानंदाचार्य जी के पवित्र गंगा तट स्थित श्रीमठ में ध्यान मग्न था । स्वामी रामानंदाचार्य जी ने जिस प्रकार लोक चेतना को समृद्ध करने के साथ धर्म चेतना में एक विशेष प्रकार का दिव्य प्रकाश भरा था । उनके लोकोपकारी कार्यों एवं समरसता के प्रति सर्जन ने मुझे प्रभावित किया । मध्यकाल जैसे अंधकारपूर्ण समय में रामरूपी महत प्रकाश से घर और समाज को एक ही साथ प्रकाशित करने के उनके गुणों ने मुझे प्रभावित किया । जिस प्रकार स्वामी रामानंदाचार्य जी ने प्रत्येक भारतीय को शास्त्र लोक, परपंरा, धर्म संस्कृति पुराण इतिहास, दर्शन और सभ्यता के द्वारा महाप्रकाश की ओर ले जाने का प्रयास किया, ऐसी बातें मेरे हदय को छु गई तथा तय किया कि मैं भी समाज में संवाद के माध्यम से वैष्णव ब्राह्मण समाजरूपी यज्ञ में आहूति बनूं । यह विचार कर वैष्णव समाज को प्रकाश की ओर ले जाने के लिए समाज के बीच एक पत्रिका प्रकाशित करने का मन बनाया ।
मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी है अखिल भारतीय वैष्णव ब्राह्मण सेवा संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष का मुख्यालय भी मुंबई है भारत के सभी शहरों का सीघा संपर्क भी मुंबई से है जब कि मुंबई व महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में वैष्णव समाज के स्वजाति बंधु रहते है । यहां से ही मुख्य रूप से वैष्णव समाज की सभी गतिविधियां संचालित होती है । ऐसे में यहां से एक पत्रिका का प्रकाशन नितांत आवश्यक है । यह सोचकर ही मैंने वैष्णव गौरव का प्रकाशन स्थल मुंबई चुना ।
हमारे समाज में अभावग्रस्त तथा सपन्न दोनो ही प्रकार के लोग हैं । इस पत्रिका के माध्यम से इस खाई को पाटने, समाज के प्रतिभावान विद्यार्थी जिनके मन में कुछ कर गुजरने की ललक है, समाज की युवा पीढ़ी तथा वयोवृद्ध नागरिकों के विचारों का सामंजस्य, समाज में हो रहे सामूहिक विवाह, युवक-युवती परिचय सम्मेलन को प्रोत्साहन तथा सम्पूर्ण भारत में पसरे वैष्णव ब्राह्मण समाज को एक सूत्र में पिरोना मेरा लक्ष्य है । हालांकि हमारे समाज में कुछ वर्षो से हो रहे सम्मेलनों के माध्यम से लोक जागृति आई है, परन्तु यह सब कुछ नहीं है अभी ओर इस सामाजिक यज्ञ में आहूतियों की जरूरत है ।
हमारे समाज में आज द्वारों की दुर्दशा और संस्कृति की दुरवस्था से जिस प्रकार आचार्य रामानंदाचार्य जी हमेशा खिन्न रहते थे, उससे मैं भी पीडि़त हूं । यह पत्रिका द्वारों जैसी ज्वलंत समस्याओं को अपनी कलम के माध्यम से सरकार तक उठाऐं । समाज के लेखक, साहित्यकार एवं नवलेखकों को मंच प्रदान करें , यह मेरा उदेश्य है । विभिन्न विचारों, मनभेद, मतभेद एवं दार्शनिक दृष्टि से बंटे इस समाज को सामाजिक क्षेत्र में एक मंच पर लाना भी मेरा एक उदेश्य है ।
अंत में वैष्णव गौरव के सभी पाठकों को मैं निवेदन करना चाहूंगा कि इस पत्रिका को युग चेतना के अनुसार लोकोन्मुखी बनाने में सहयोग दें । तर्क व्याख्या में न जाकर वैष्णव को अधिक मजबूत करने हेतु इस पत्रिका का प्रचार करें तथा समय-समय पर पाठकवृंद से निवेदन है कि मेरा मार्गदर्शन कर इस वैष्णव गौरव को प्रत्येक वैष्णव के हदय स्थल में स्थान देने में सहभागी बनें इसी अपेक्षा के साथ अगले अंक में मिलेंगे ।, तब तक जय सियाराम,.........
सम्पादक जयंती भाई वैष्णव
वैष्णव गौरव के प्रमुख उदेश्य
1. चतुःसम्प्रदाय वैष्णव समाज की राज्य स्तरीय जनगणना करवाना तथा इसके माध्यम से जिला स्तर पर समाज के परिवारों की गणना करना ।
2. शिक्षा के क्षेत्र में समाज के युवाओं को भरपूर मदद देने के लिए व मेधावी छात्रों को विशेष प्रोत्साहन देने के लिए एक शैक्षणिक संस्थान की स्थापना करना ।
3. मध्यम परिवारों के मेधावी छात्र-छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए ब्याजरहित राशि उपलब्ध करवाना, जो शिक्षा पूरी हो जाने के बाद छात्र-छात्रा द्वारा ली गई राशि पुनः उसी कोष में जमा करवाना ।
4. देश भर के प्रमुख शहरों में जहां समाज के लोग बड़ी मात्रा में रहते हो, वहां पाॅलोटेक्निक, इंजीनियरिंग व विभिन्न प्रकार के रोजगारोंन्मुक्त डिग्री कोर्सेस के साथ महाविद्यालयों की स्थापना करना ।
5. राजस्थान में देवस्थान विभाग से संबंधित समस्याओं से पीडि़त समाज बंधुओं की समस्याओं का शीघ्र निस्तारण हेतु राजस्थान की राजस्थानी जयपुर में शक्ति प्रदशर्न करना ।
6. समाज के छोटे से छोटे वर्ग के व्यक्तियों का भी जो समाज के लिए योगदान देते है, उनका समय-समय पर अभिनंदन करना व उनकी पीठ थपथपना ।
7. समाज संगठन की मजबूती के लिए जिला स्तर पर भी इकईयों का गठन करना ।
8. वर्ष में कम से कम दो बार कार्यकारिणी की बैठकों को आमंत्रित करना व समाज के संदर्भ की समस्याओं का गंभीरता से चिंतन करना व निवारण करवाना ।
9. जिला स्तर की समितियों के प्रतिनिधत्व से राज्य इकाईयों की स्थापना करना व राज्य इकराईयों द्वारा जिला स्तर की इकाईयों के कार्यो का अवलोकन करना व उसका मुल्यांकन कर उन कार्यों को प्रोत्साहित करना ।
10. महिला सशक्तिकरण हेतु जिला स्तर पर महिला समितियों का अलग से गठन करना और वर्ष में एक बार महिला सम्मेलन का आयोजन करना, जिससे समाज की महिलाओं को भविष्य में केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों के महिला आरक्षण से मिलने वाले लाभों के माध्यम से समाज की महिला वर्ग में जागृति लाना व समाज में नारी उत्थान के लिए विभिन्न गतिविधियों का आयोजन करना ।
11. समाज के युवाओं में जनजागृति के उदेश्य से युवा इकाईयों को गठन करना व समाज में युवाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना ।
12. समाज के जरूरतमंद लोगों कोे चिकित्सा, शिक्षा, व आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने के लिए एक समिति का गठन करना ।
13. चतुःसम्प्रदाय वैष्णव सम्प्रदाय की ऐतिहासिक जानकारी का संकलन करना व उसे समाज पटल पर रखना तथा इसके संदर्भ में सभी पठनीय सामग्री प्रत्येक वैष्णव परिवार की दहलीज पर पहुंचाना ।
14. देश के सभी वैष्णव आचार्यो व साधु संतों का वार्षिक सम्मेलन का आयोजन करना व उनका मार्गदर्शन प्राप्त करना ।
15. समाज के विभिन्न जीर्ण-क्षीण पड़े द्वारों, मंदिरों, स्थानों का पुनः निर्माण करवाना तथा व्यवस्थापकों की नियुक्ति करना । इनकी देख-रेख करने के लिए निजी ट्रस्टों की स्थापना करना ।
16. समाज में फेली हुई कुरीतियां यथा बाल विवाह, मृत्यु भोज, भिक्षा वृति आदि को बंद करने के लिए समाज को जागृत करना व इसके निवारण के लिए उचित कदम उठाना ।
17. समाज द्वारा युवक-युवती परिचय सम्मेलन व सामूहिक विवाह सम्मेलन का आयोजन करना तथा तालुका, जिला व राज्य स्तर पर हो रहे सामूहिक विवाह व परिचय सम्मेलन के आयोजकों को प्रेरित करना ।
18. पूरे देश में स्थान-स्थान पर समाज के सामुदायिक भवन व छात्रावास भवनों की स्थापना करना व सस्ती दरों पर समाजबंधुओं को ये भवन उपलब्ध करवाना ।
19. हर गांव ढाणी तालुका, शहर जिला व राज्य में समाज की कमजोर से कमजोर व्यक्ति को भी समाज के जीवंत संगठनों के माध्सम से उसे संबल प्रदान करना , राहत पहुंचाना व समाज के वरिष्ठ व्यक्तियों द्वारा उन्हें सुरक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करवाना ।
20. वैष्णव समाज की परंपराओं, सभ्यता, सांस्कृति धरोहर जो समाज को विरासत में मिली है, उसे सुरक्षित रखना व पत्रिका के माध्यम से इसे प्रकाशित करना ।
21. समाज के प्रत्येक सदस्यों को समाज की ऐतिहासिक पृष्ठीाूमि से अवगत करवाना व समाज की पूरी जानकारी व उसकी विरासत को छात्रावासों में , समाज द्वारा स्थापित बहु उदेश्यीय भवनों में तथा पुस्तकालयों में यह पूरी जानकारी उपलब्ध करवाना ।
22. निचली कक्षाओं से उत्तीर्ण हुए विद्याथियों को अपना भविष्य तय करने के लिए मार्ग दर्शन करना । कक्षा 10 के बाद में क्या ? 12 के बाद में छात्र क्या करे , इसकी पूरी जानकारी व मार्ग दर्शन की व्यवस्था करना व कोर्स उपलब्ध करवाना ।
23. समाज के विकास हेतु छात्रों, महिलाओं, व वरिष्ठ नागारिकों द्वारा लेख, फीचर, कहानी, कविता व अपनी निजी अनुभवों को प्रकाशन हेतु आमंत्रित करना व उन्हें पत्रिका में प्रकाशित कर प्रोत्साहन देना ।
24. समाज के अग्रणीय व्यवसायिकों, उद्योगपतियों व विभिन्न विषय विशेषज्ञों द्वारा समय-समय पर संगोष्ठियों का आयोजन करना व वैष्णव गौरव के माध्यम से उनके वैचारिक अनुभवों तथा उनकी उपलब्धियों को समाज पटल पर रखना ।
25. वैष्णव गौरव के माध्यम से विभिन्न धार्मिक आयोजन यथा कृष्ण जन्माष्टमी, रामानंद जयंती,निम्बार्काचार्य जयन्ति, रामनवमी व हनुमान जयंती जैसे धार्मिक अनुष्ठानों का अयोजन करना व इन आयोजनों के माध्यम से भी वैचारिकता का अदान-प्रदान करना ।
26. राजनीति क्षेत्र से जुडे समाजबंधुओं का समाज में अभिनंदन करना व समाज के अग्रबंधुओ को राजनीति में हिस्सा लेने हेतु प्रोत्साहित करना ।
27. समाजबंधुओं को विभिन्न व्यापार - व्यवसाय हेतु मार्गदर्शन करना व उसकी विस्तृत जानकारी पत्रिका में प्रकाशन करना ।
28. समाज को व्यसनमुक्त करने हेतु समाज को जागृत करना व नशा मुक्ति के लिए विभिन्न प्रकार के लिए सम्मेलनों का आयोजन करना, एक पूर्ण रूपेण नशाामुक्त समाज की स्थापना करना ।
29. आधुनिक जनसंचार के माध्यम जैसे वेबसाइड, ईमेल द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समाज को वैष्णव गौरव के माध्यम से जोड़ना ।
30. समाज की राज्य व जिला स्तर की इकाईयों द्वारा तथा समाज के सम्पन्न व समाथ्र्यवान वैष्णव बंधुओं द्वारा मेधावी छात्रों को गोद लेकर उनकी शिक्षा दीक्षा संपन्न करवाना व गोद लेने की जन सहभागिता के सिद्धान्त को समाज में प्रतिपादित करना ।
31. समाज में चिकित्सा सेवा/स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाना व स्थान-स्थान पर मेडिकल कैंपो का अयोजन करना जैसे कि चश्मा वितरण शिविर, आंखों की जांच मधुमेह, रक्त जांच आदि ।
32. समाज के प्रत्येक भाग में शीघ्र ही वैष्णव ब्लड बैंक व बुक बैंक की स्थापना करने हेतु समाज को प्रेरित करना
33. पर्यावण के प्रति समाज में जनजागृति अभियान छेड़ना व पर्यावरण संबंधी विभिन्न प्रकार की जानकारी उपलब्ध करवाना स्थान-स्थान पर वृक्षारोपण करवाना ।
34. समाज के वरिष्ठ नागरिक समाज के सरमायेदार होते हैं, इसलिए वैष्णव गौरव के मंच से समाज के वरिष्ठ नागरिकों तथा वृद्ध सम्मान का आयोजन करना ।
उपरोक्त सभी मुददों के माध्यम से वैष्णव गौरव समाज का सही अर्थो में प्रतिनिधित्व करने वाला दर्पण साबित होगा ।